बलात्कार तो अख़बार वालो ने कर दिया है.......

जीवन में कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं....जो हमेशा याद रहती हैं...ऐसी ही घटना के बारे में आज आपको बताने जा रहा हूं....खबर मिली थी कि साउथ दिल्ली में एक जापानी छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ है....फटाफट पता किया गया तो मालूम हुआ कि इस्कान टेंपल के बाहर ये घटना हुई है...जापानी लड़की पैदल जा रही थी...तभी कार में सवार लोगों ने उसका अपहरण कर लिया....लड़की के साथ कार में बलात्कार किया गया और फिर उसे पूर्वी दिल्ली के गाजीपुर इलाके में सुनसान जगह पर फेंक दिया....लड़की बेहोशी की हालत में मिली.....खबर उस समय और पुख्ता हो गई....जब पुलिस ने अपनी प्रेस रिलीज में इसकी पुष्टि कर दी...ये खबर मैंने भी लिखी थी और डेस्क पर भेज दी.....इसके बाद शाम को गढ़ी इलाके में एक इमारत में आग लगने की खबर पर मैं फोटोग्राफर के साथ निकला...सौभाग्य से वहां पर लाजपतनगर के एसएचओ राजेंद्र बक्शी मिल गए...उन्ही के इलाके में ही गैंगरेप हुआ था....मैंने लगे हाथों उनसे रेप का फालोअप लिया तो एसएचओ तुरंत मुकर गए....उन्होने कहा कि लड़की का मेडिकल कराया गया,उसमें बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई....लड़की के साथ गंदी हरकत जरुर की गई....हमने एंबेसी वालों को भी बताया....मैंने पूछा कि सुबह तो रेप और शाम को केवल छेडछाड, क्या मेन्युप्लेशन है....एसएचओ साहब तिलमिला गए...और ताव में आकर उन्होने मेडिकल रिपोर्ट ही दिखा दी....बोले मेडिकल मैंने थोड़े किया है....डाक्टरों ने किया है....उनसे जाकर पूछो.... मैं आफिस आया और अपनी खबर को दोबारा लिखा.....अगले दिन दोपहर में चीफ रिपोर्टर का फोन आया और बोले....तू क्या चाहता है...आए दिन कोई ना कोई पंगा लेता है....लगता है तेरे दिन पूरे हो गए हैं...अपने घर हापुड चला जा...पत्रकारिता छोड़कर वहां कोई और काम धंधा कर ले....मुझे अपने बॉस की डांट फटकार बुरी नहीं लगी...मैंने पूछा आज क्या हो गया....उनकी डांट का मैं आदि हो गया था...क्योंकि वो मुझे बहुत चाहते थे....और सिखाते भी थे...उन्होने कोई मॉस कॉम नहीं किया था...मेरठ से हिंदी विषय में पोस्ट ग्रेजुएशन की थी.....वो कई बातें समझाई थी जैसे कि प्रयास शब्द कहां लिखना चाहिए...उन्ही की हिदायत थी कि बलात्कार की घटना में ये नहीं लिखना चाहिए कि फलां के साथ बलात्कार का प्रयास किया गया....उनका कहना था कि प्रयास हमेशा अच्छे काम के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए...जैसे फलां ने फलां मुकाम हासिल करने के लिए प्रयास किया....बलात्कार की खबरों में ये लिखना चाहिए कि फलां ने बलात्कार की कोशिश या चेष्टा की....हालांकि इस तरह की बातें समझाने वाले बॉस आजकल कम ही मिलते हैं......खैर मुददे पर आता हूं....मैंने बॉस से नाराजगी की वजह पूछी तो उन्होने कहा कि संपादक जी बुलाकर मुझे दिल्ली से छपने वाले हिंदी और अंग्रेजी के तमाम अखबार दिखाए है....सबकी लीड स्टोरी है दिल्ली में जापानी लड़की से बलात्कार.....और हमारे अखबार ने बलात्कार की बजाए छेडछाड ही लिखा....तुरंत आफिस आओ और अपना रिजाइन देकर घर चले जाओ...अब मुझसे बर्दाश्त नहीं होता....मैंने अपने शातिर दिमाग को जगाया और एसएचओ को फोन लगाया.....एसएचओ का जवाब सुनकर मेरी हालत और पतली हो गई....काटो तो खून नहीं....एसएचओ ने कहा कि मुझसे इस बारे में कुछ मत पूछो, जांच क्राइम ब्राांच को सौंप दी गई है, उन्ही से जाकर पूछो....मैं फटाफट पुलिस हेडक्वार्टर पहुंचा....उस समय डीसीपी क्राइम कर्नल सिंह हुआ करते थे....उनसे मिला, तो जान में जान आई....उन्होने दिल्ली के तमाम समाचार पत्रों में छपी खबर का खंडन किया और वो रिजाइंडर दिखाया, जो वो उन अखवारवालों को भेजने वाले थे....मैंने कहा कि इसकी एक कॉपी मुझे दे दो...उन्होने दे दी....उन्हे मैंने बताया कि अच्छा हुआ मैंने शॉम को खबर का फालोअप कर लिया था...वर्ना ये रिजाइंडर हमें भी छापना पडता....लेकिन उस समय ये बात बेफजूली लग रही थी..क्योंकि उस समय तो मेरी नौकरी पर बन आई थी.....रिजाइंडर लेकर मैं आफिस पहुंचा....हिम्मत दिखाकर बॉस के पास पहुंचा और उन्हे पूरी बात बताई...वो मुझे अपने साथ संपादक जी के पास ले गए....संपादक जी ने अपनी बड़ी बड़ी आंखों से मुझे ऐसे घूरा....जैसेकि मुझे जिंदा चबा जाएंगे....मैं कुछ नहीं बोला...बोले तो मेरे बॉस....उन्होने कहा कि आज दिल्ली में केवल एक ही अखबार ऐसा है, जिसने सच्चाई छापी है, तथ्यों को तोड़मरोडकर पेश नहीं किया....सर....जापानी लड़की के साथ बलात्कार किसी ने किया हो या ना किया हो, अखबारवालों ने तो बलात्कार कर दिया है, किस और जा रही है पत्रकारिता....संपादक जी तमाम तथ्यों से अवगत कराया गया...तो उन्होने सही रिर्पोटिंग करने पर मुझे शाबाशी दी....ऐसी शाबाशी का क्या फायदा, जिसने दिनभर मेरा दम सुखाए रखा.....खैर इस पूरे प्रकरण में मुझे अपनी उस गलती का अहसास हुआ, जो नजरअंदाज हो गई...लेकिन उस घटना से मुझे वो सबक दिया कि मैंने वैसे गलती दोबारा नहीं की....गलती ये थी कि सुबह की घटना और शाम की घटना, याना जो फालोअप मैंने किया...उसको ढंग से लिख नहीं पाया...यानी मैंने खबर घटनाक्रम के मुताबिक सीधे सीधे लिख दी कि छेडछाड हुई...मुझे खबर के अंदर ये भी लिखना चाहिए था कि किस तरह डीसीपी ईस्ट ने बलात्कार की पुष्टि की और फिर किस तरह मेडिकल रिपोर्ट से मामला छेडछाड में तब्दील हुआ.... खैर....बात यही खत्म नहीं होती....संपादक जी मेरे बॉस के तर्क से इतने प्रभावित हुए कि उन्होने जापानी छात्रा के साथ कथित बलात्कार की घटना पर ना केवल संपादकिए ही लिख डाला, बल्कि मीडिया को भी उसमें आडे हाथों लिया.....दोस्तों जाईयेगा नहीं, किस्से अभी बाकी हैं.....

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