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दिल्ली के एक पनवाड़ी को तलाश है 500 करोड़ रुपए की। यह कोई मजाक नहीं है, बल्कि एक कारोबारी की महत्वाकांक्षी
विस्तार योजना का हिस्सा है, जिसके लिए उसने भारतीय कंपनियों से बातचीत शुरू कर दी है। दरअसल 'यमू पान पार्लर' नाम की इस कंपनी के गुमटी से पार्लर तक के सफर की भी एक दिलचस्प घटना है। एक क्लब की सदस्यता के लिए पार्लर के मालिक हरी भाई लालवानी की अर्जी इसलिए खारिज कर दी गई, क्योंकि पान बेचने को कारोबार की मान्यता नहीं दी गई। इसके बाद तो लालवानी ने पान बेचने के कारोबार को कॉरपोरेट ढांचे में ढालने की ठान ली और फिर पान की गुमटी की जगह अस्तित्व में आया 'पान पार्लर'। अब यही 'पान पार्लर' कारोबार बढ़ाने के लिए 500 करोड़ की इक्विटी जुटाने जा रही है।
प्रिंस ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के मालिक हरी भाई लालवानी ने कहा, 'हमारी योजना हैदराबाद, बंगलुरू दिल्ली में जैसे शहरों में कारोबार बढ़ाने की है, जिसके लिए कंपनी फंड जुटा रही है।'
लालवानी ने बताया कि पान पार्लर खोलने के पीछे दो कारण थे। पहला पान के कारोबार को कॉरपोरेट रंग देना और आम तौर पर पुरुषों के इस्तेमाल की चीज माने जाने वाले पान को महिलाओं के बीच भी लोकप्रिय बनाना। लालवानी ने कहा, 'भारतीय समाज में पान की दुकान पर खड़ा होने में ज्यादातर महिलाएं सहज महसूस नहीं करतीं। इसलिए दरियागंज में अपनी पहली पान की दुकान के अनुभवों को ध्यान में रखते हुए कंपनी ने करीब 10 साल पहले कनॉट प्लेस में पान पार्लर खोला, जिसमें पान बनाने के लिए कर्मचारी भी महिलाएं रखी। ताकि कोई भी लड़की या महिला वहां आने में संकोच न करे। हमारे पान पार्लर में फिलहाल 80 फीसदी कर्मचारी लड़कियां हैं।'
अभी यमू पान पार्लर के मुंबई, गुजरात और दिल्ली समेत 15 पान पार्लर हैं। कंपनी की सभी दुकानों का टर्नओवर अलग-अलग रिकॉर्ड किया जाता है। यमू पान पंचायत के कनॉट प्लेस स्टोर की बिक्री रोजाना 20-25 हजार रुपए की बिक्री हो जाती है।
देश के विभाजन के बाद भारत आकर बसने से लेकर पान पार्लर खोलने तक का सफर लालवानी परिवार के लिए इतना आसान नहीं था। आजादी से पहले पाकिस्तान के धनाढ्य परिवारों में से एक लालवानी परिवार का कराची में शिपिंग का कारोबार था। विभाजन के समय अपनी सारी धन-दौलत साथ लेकर लालवानी का 85 सदस्यों वाले परिवार ने भारत का रुख किया, लेकिन यहां आते-आते परिवार के सिर्फ सात ही सदस्य जीवित बचे। भारत पहुंच बचे-खुचे लालवानी परिवार के पास कुछ नहीं बचा था। दाल-रोटी का जुगाड़ करने के लिए लालवानी परिवार कश्मीरी गेट के चर्चगेट पर चाय बेचने का काम करने लगा।
कुछ समय बाद हरी लालवानी के दादा-दादी ने दरियागंज में 'प्रिंस पान' के नाम से दुकान खोली। वह एक छोटा सा खोखा हुआ करता था, जिसे उनकी दादी ने सिर्फ 2,500 रुपए से शुरू किया था। उस समय में सभी जगह पान '2 पैसे' में मिलता था लेकिन लालवानी परिवार ने पान में केसर, छुहाड़ा, चांदी का वर्क जैसी सामग्रियों को मिला कर क्वालिटी को बेहतर किया और पान को '4 पैसे' में बेचा। वह पान को पेपर में पैक करके बेचते जिसे उस समय पान के शौकीनों ने हाथों-हाथ लिया।
जाकिर हुसैन कॉलेज से पढ़ाई पूरी करने के बाद हरी लालवानी पुश्तैनी कारोबार से जुड़े। समाज में पनवाड़ी की ब्रांडिंग को बेहतर बनाने के लिए 'पान पार्लर' लेकर आए। दरियागंज में उनकी पुश्तैनी दुकान 'प्रिंस पान' के नाम से आज भी है।
पान के कारोबार में एक कदम और आगे और आगे बढ़ाते हुए उनकी कंपनी करीब सात साल की मेहनत और रिसर्च के बाद सूखा पान बाजार में उतारने जा रही है। हरी लालवानी ने बताया, 'प्रिंस पान करीब सात साल की मेहनत के बाद सूखा पान बाजार में उतारने जा रही है, जिसकी शेल्फ लाइफ छह महीने होगी। सूखे पान को सौंफ, नारियल, गुलकंद, गुलाब, इलायची, छुहाड़ा और केसर को पान के साथ धूप में सुखाकर तैयार किया जाता है।'

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