महाभारत में भगवान गणेश ने क्या भूमिका निभाई ?



महाभारत में भगवान गणेश की भूमिकागणेश जी को प्रथम लिपिकार माना जाता है..क्योंकि उन्होंने ही देवताओं की प्रार्थना पर वेदव्यास जी द्वारा रचित महाभारत को लिपिबद्ध किया था। जी हां, महाभारत की रचना गुरू वेदव्यास जी ने जरूर की थी। परंतु उस ग्रंथ को लिखने वाले हाथ भगवान श्रीगणेश जी के थे।

कथानुसार वेदव्यास जी ने तपस्या में संलग्न होकर महाभारत की घटनाओं का आदि से अंत तक स्मरण कर मन ही मन महाभारत की रचना कर ली। परंतु उनके सामने एक गंभीर समस्या खड़ी हो गई। वह यह कि इस काव्य के ज्ञान को सामान्य जनसाधारण तक कैसे पहुंचाया जाए। क्योंकि जटिलता तथा लंबाई के कारण यह बहुत कठिन था, कि बिना गलती किए कोई इसे वैसा ही लिख दे जैसा कि वे बोलते जाएं। अतः ब्रह्मा जी के कथनानुसार व्यास जी, श्रीगणेश जी के पास पहुंचे। गणेश जी लिखने के लिए तैयार हो गए।
किंतु वेदव्यास के समक्ष उन्होंने एक शर्त रखी दी। शर्त यह कि एक बार कलम उठाने के उपरांत काव्य समाप्ति तक वे बीच में नहीं रुकेंगे। व्यास जी को ज्ञात था कि यह शर्त बहुत कठनाईयां उत्पन्न कर सकती हैं। अतः उन्होंने भी गणेश जी के समक्ष कोई भी श्लोक लिखने से पहले उसका अर्थ समझने की शर्त रख दी। गणेश जी ने व्यास जी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। 
इस प्रकार से व्यास जी बीच-बीच में कुछ कठिन श्लोकों को रच देते और जब गणेश जी उनके अर्थ पर विचार कर रहे होते उतने समय में ही व्यास जी कुछ नये श्लोक रच देते। इस प्रकार सम्पूर्ण महाभारत तीन वर्षों के अंतराल में लिखी गयी। महाभारत ग्रंथ की रचना पूर्ण करने के पश्चात वेदव्यास जी ने सर्वप्रथम अपने पुत्र शुकदेव को इस ग्रंथ का अध्ययन कराया। तदंतर अन्य शिष्यों वैशम्पायन, पैल, जैमिनि, असित-देवल आदि को इसका अध्ययन कराया। शुकदेव जी ने गन्धर्वों, यक्षों तथा राक्षसों को इसका अध्ययन कराया। देवर्षि नारद ने देवताओं को, असित-देवल ने पितरों को तथा वैशम्पायन जी ने मनुष्यों को इसका प्रवचन दिया। 

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