सत्ता का सेमीफाइनल जीतने के लिए बिसात पर बिछने लगी गोटियां



- 2019 के लोकसभा चुनाव में मायावती की भूमिका-

-अरविन्द शर्मा- इस साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल हैं, जिसके नतीजे देश में नया समीकरण बना सकते हैं. कांग्रेस के लिए ये चुनाव जीतना महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पार्टी के प्रति कार्यकर्ताओं का विश्वास बढ़ेगा. राहुल गांधी को विपक्ष के नेता के तौर पर स्थापित होने में आसानी होगी. हालांकि कांग्रेस के लिए मायावती को साथ रखने के लिए मशक्कत करनी पड़ सकती है. मायावती ने साफ कर दिया है कि उनको ज्यादा सीटें चाहिए. कांग्रेस के लिए ज्यादा सीटें देना आसान नहीं हैं. इससे पार्टी के भीतर बागियों की संख्या में इज़ाफ़ा हो सकता है. हालांकि कांग्रेस के नेता कह रहे हैं कि गठबंधन में कोई खास दिक्कत नहीं आएगी क्योंकि मायावती यूपी में ही काफी कमज़ोर हैं, जिससे उनकी मोल-तोल की ताकत घटी है. हालांकि कांग्रेस को मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी से भी तालमेल करना पड़ सकता है.
कर्नाटक के नतीजों से मायावती उत्साहित हैं. कर्नाटक में जेडीएस के साथ गठबंधन के बावजूद बीएसपी का एक ही विधायक जीत पाया है. लेकिन कांग्रेस को दूसरी नंबर की पार्टी बनाने में मायावती का अहम योगदान है. यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी के साथ बेंगलुरु में मायावती की तस्वीर नए राजनीतिक समीकरण की तरफ इशारा करती है.
 
 (File photo)

सूत्रों के मुताबिक  कांग्रेस भी मायावती की तरफ उम्मीद से निगाह गड़ाए हुए है. राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीएसपी के साथ कांग्रेस चुनावी समर में उतरना चाहती है. कांग्रेस के नेता इस को लेकर आपस में बातचीत कर रहे हैं.
आम चुनाव v/s तीन राज्य
2003 के चुनाव में तीनों राज्यों में बीजेपी की सरकार बनी थी. अति उत्साह में अटल बिहारी वाजपेयी ने समय से पहले चुनाव करा दिया. नतीजा बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा. 2008 में मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ में बीजेपी को जीत मिली तो राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनी थी. केंद्र में 2009 में यूपीए की सरकार बन गई. 2013 इसका अपवाद है, जिसमें तीनों राज्यों में बीजेपी की सरकार बनी तो 2014 में भी केंद्र में बीजेपी को जनादेश मिला था.
क्या संकेत देते हैं समीकरण
बीएसपी तीनों ही राज्य में पिछले चुनाव में मैदान में उतरी थी. बीएसपी ने 2013 के चुनाव में छत्तीसगढ़ में सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ा था. मध्यप्रदेश में 220 सीटों पर और राजस्थान के 190 सीटों पर पार्टी ने उम्मीदवार उतारा. कांग्रेस के नेता भी मानते हैं कि कई सीटों पर बीएसपी की वजह से कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा था.

राजस्थान
राजस्थान में हर पांच साल में बदलाव की बयार बहती है. राजस्थान की 200 सीटें में बीजेपी के पास तकरीबन 163 सीटें हैं. 2013 के चुनाव में बीजेपी को 46 फीसदी वोट मिले थे. कांग्रेस को लगभग 34 फीसदी वोट मिले लेकिन सीटें काफी कम मिली थीं. इस तरह बीएसपी को 3 सीटें मिली और वोट 3.5 फीसदी. हालांकि बीएसपी-कांग्रेस मिलाकर भी बीजेपी के बराबर वोट नहीं हैं. लेकिन इस बार राज्य में सरकार बीजेपी की है. सरकार के खिलाफ माहौल है.
पिछले उपचुनाव में बीजेपी की करारी शिकस्त हुई है. लेकिन कांग्रेस कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती है. कांग्रेस के प्रभारी और राज्य के नेताओं के बीच विचार विमर्श चल रहा है. क्योंकि 2008 के चुनाव में बीएसपी की ताकत ज्यादा थी. पार्टी को 6 सीटें भी मिली थीं, जबकि वोट 7.60 फीसदी. हालांकि सभी बीएसपी विधायक कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार के समर्थन में चले गए थे.

छत्तीसगढ़
पंद्रह साल से कांग्रेस सत्ता से बाहर है. यहां भी बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस को बीएसपी का सहारा है, जिसके पास तकरीबन 4 फीसदी वोट हैं. राज्य में बहुजन समाज पार्टी का एक विधायक है. कांग्रेस के पास रमन सिंह का विकल्प भी नहीं है. कांग्रेस के बड़े नेता नक्सली हमले में शहीद हो गए थे. पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी अपनी पार्टी बना चुके हैं. ज़ाहिर है कि यहां कांग्रेस की चुनौती अलग तरह की है. पार्टी या तो अजित जोगी से समझौता करे नहीं तो कांग्रेस का जीतना मुश्किल रहेगा. ऐसे में बीएसपी कांग्रेस का सहारा बन सकती है. कांग्रेस से सत्ता से बाहर है. आदिवासी बहुल इलाका होने के बावजूद बीजेपी को पंद्रह साल से मात नहीं दे पाई है.

मध्यप्रदेश
यहां कांग्रेस की चुनौती बड़ी है. 2003 से बीजेपी की सरकार है. कांग्रेस ने इस बार कमान कमलनाथ को दी है. जबकि दिग्विजय सिंह को कोऑर्डिनेशन कमेटी का चेयरमैन बनाया है. ज्येतिरादित्य सिंधिया को कैंपेन कमेटी का प्रमुख बनाकर शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ मज़बूत खेमेबंदी की गई है. मध्यप्रदेश के समीकरण को देखने में बीएसपी कांग्रेस मज़बूत चुनौती पेश कर सकते हैं. 2008 के चुनाव में कांग्रेस का 32 फीसदी और बीएसपी का 7.5 फीसदी बीजेपी के 37 प्रतिशत वोट से ज्यादा है. लेकिन 2013 में यही आकंड़ा कम हो जाता है. दोनों के वोट मिलाकर बीजेपी के बराबर नहीं हैं. बीएसपी का वोट साथ आने से कांग्रेस को काफी फायदा हो सकता है. 2013 के चुनाव में प्रदेश में बीएसपी को 2 सीट भी मिली थी.

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