ऐसे ही नहीं पलटी किस्मत दादा की- बचपन में पलटू ( Paltu ) के नाम से जाना जाता था Pranab Mukherjee को







                     (Pranab Mukherjee Nicknamed As Paltu In Childhood)

  - अरविंद शर्मा-

गोल मटोल पलटू न तो किसी कार्टून चैनल का करेक्टर है और ना ही असल जिंदगी में बर्गर-पीजा मांगने वाला जिददी बच्चा। पलटू इंटरनेट पर लड़कियों से चैटिंग कर समय बर्बाद करने वाली नई पीढ़ी का अविष्कार भी नहीं है। यह पलटू जीता जागता बीरभूमि का प्रणब मुखर्जी है, जो बचपन में इसी नाम से जाना जाता था। पलटू मिट्टी से सने पैर लेकर स्कूल से घर लौटता और जिंदगी में कभी हार नहीं मानी। छोटे कद के इसी पलटू ने कड़ी मेहनत और कड़े अनुशासन के बल पर ही रायसीना हिल की लंबी रेस जीती है। पढ़ाई में मन लगाने वाले इस पलटू ने समय को तो पलटा है। लेकिन सवाल यह है कि पूर्व राष्ट्रपति ऐपीजे कलाम की तरह नई पीढ़ी के आईडियल बन पाएंगे ?

कई रोचक किस्से

कच्चे घर से राष्ट्रपति भवन पहुंचने तक के पलटू कई रोचक किस्से ऐसे हैं, जिन्हें उनके बेहद करीबी लोगों ने मुझसे साझा किये है। बात समय की है, जब गोलमटोल पलटू गांव से सात किलोमीटर दूर स्थित स्कूल पैदल जाया करते थे। रास्ते में उन्हें नदी नाले भी पार करने होते थे, इसलिए यूनिफार्म बस्ते में रखकर लुंगी में ही स्कूल जाया करते थे। ताकि डे्रस खराब ना हो। उन दिनों दक्षिण भारत में तैनात इंडियन सिविल सर्विसिज (आईसीएस) के एक अधिकारी स्कूल का निरीक्षण करने आए तो हेडमास्टर साहब उन्हें सबसे बड़ी क्लास दसवीं में ले गए। जहां आईसीएस अधिकारी ने छात्रों से पूछा कि अखबार पढ़ते हो, तो बच्चों ने मना कर दिया।

गोलमटोल पलटू 

 उस समय तीन चार गांवों को मिलाकर एक ही गांव में, वो भी सबसे स्कूल में ही आता था। अखबार भी एक दिन पुराना होताथा। हेड मास्टर साहब ने आईसीएस अधिकारी को बताया कि उनके स्कूल में एक बच्चा है, जो अखबार पढऩे का शौक रखता है, वो सातवीं जमात में हैं। अधिकारी हैरान हुए और सातवी क्लास में पहुंच गए, तब अधिकारी ने पूछा कि कौन बच्चा है, तो हेडमास्टर ने गोलमटोल पलटू की तरफ इशारा किया। अधिकारी ने पलटू से सवाल दागा, बताओ अमेरिका में कौन सा चुनाव होने वाला है और किन चुनाव जीत सकता है। 

तब पलटू ने सब कुछ सही सही बता दिया। यही पलटू जब प्रणब बनकर केंद्र में मंत्री बना तो वह एक कार्यक्रम के सिलसिले में दक्षिण भारत के नीलगिरी क्षेत्र में किसी कालेज के समारोह में मुय अतिथि बनकर गए। उन्हें आईसीएस अफसर के बारे में याद था, उन्होंने समारोह खत्म होने के बाद रिटायर्ड हो चुके इस अधिकारी की खोज की। पता चला कि वह तो कार्यक्रम में आगे की लाईन में बैठे थे, तब प्रणव उनके घर गए और उनके साथ चाय पी। तब अधिकारी ने बताया कि उन्होंने एक किताब लिखी थी, जिसमें तेजतर्रार पलटू की अखबार पढऩे की घटना का जिक्र किया हुआ है।

 बहन के बहुत चहेते


पलटू अपने से छह साल बड़ी बहन अन्नपूर्णा देवी के बहुत चहते थे। बहन की 18 साल की उम्र में शादी हो गई, अन्नपूर्णा देवी ने उन्हें हमेशा से बेटे की तरह माना। अन्नापूर्णा ने हमेशा से अपने घर में प्रणव के लिए एक कमरा रिजर्व रखा। अन्नापूर्णा के साथ साथ प्रणव अपने बड़े भाई पीयूष के साथ अखबार में छपी खबरों और विश£ेषणों पर गंभीर चर्चा करते थे।

आजादी की लड़ाई में भूमिका


प्रणब मुखर्जी के पिता स्वतंत्रता सैनानी थे। बात उन दिनों की है, जब उनके पिता जेल में थे। लाहौर प्रस्ताव का पालन करने के लिए हर साल 26 जनवरी का तिरंगा फैराने का फैसला लिया गया। तब प्रणब के बड़े भाई पीयूष छत पर तिरंगा फैराते और नीचे प्रणव शपथ पढ़ा करते थे, जो कि बहुत लंबी होती थी। प्रणव की बहन अन्नपूर्णा ने कभी सोचा भी नहीं था कि उनका पलटू कभी राजनीति में जाएगा।

बीरबल की तरह हाजिर जवाब


संसद में प्रणब मुखर्जी संकट मोचक ऐसे ही नहीं बने, उनकी हाजिरी जवाबी और हर विषय पर गहन अध्यन प्रमुख कारण था। अक्रॉस दा पार्टी लाइन लीडर उन्हें ऐसे ही नहीं माना गया, प्रणब हर किसी की बात गंभीरता से सुनते और फिर उन्हें रॉय रखने का मौका देते। इसके बाद ही फैसला लेते। सिविल सर्वेंट की इज्जत करते रहे हैं, सुबह छह बजे उठकर रात दस बजे तक काम करना उनकी आदत में शुमार है। रात दस बजे के बाद ही विजिटर से मिलते रहे हैं।

जसवंत को नसीहत


संसद में किसी मुददे पर टैक्स कम करने पर बहस हो रही थी, जसंवत सिंह खड़े होकर बोल रहे थे, उन्होंने प्रणब दादा को घेरा, तो प्रणव ने कहा कि मैं तो केवल कभी पाइप ही पिया करता था, आप तो और ही पीते हो, मेरी सलाह उसे छोड़ दो।

वाजपेयी ने कहा दादा से पंगा मत लो


बात उन दिनों की है, जब अटल बिहारी वाजपेयी सदन में बैठे थे और मुरली मनोहर जोशी हिंदुत्व की परिभाषा को लेकर बोल रहे थे, तब प्रणब मुखर्जी ने उन्हें बीच में टोका और उनके भाषण में करेक्ट करते हुए हिंदुत्व के बारे में बोला। तब अटल जी ने मुरली मनोहर जोशी से बोले कि प्रणब दा से पंगा मत लो, ये तो चंडी पाठ करते हैं, बैठ जाओ.