दिल्ली के जाने माने कोर्ट रिपोर्टर हैं। उनकी नौकरी लगने वाले दिन का किस्सा मुझे आज भी याद है। दैनिक जागरण के दफतर में़़। हमारे चीफ रिपोर्टर ने पहले दिन उन्हे खबर बनाने के लिए एक प्रेस विज्ञप्ति दी और कहा कि जाकर खबर बनाओ। उन्होने कई खबरें बनाई और फिर घर चले गए। अगले दिन चीफ रिपोर्टर मीटिंग में तिलमिलाते हुए पहंुचे और उन्होने पूछा कि सिंहल आया है या नहीं। सिंहल साहब को लगा कि आज उनका दूसरा दिन है, तो पूछ कुछ ज्यादा ही हो रही है। इसलिए फटाक से ऐसे बोले जी सर, जैसे क्लास में फस्र्ट आए हो। फिर क्या था उन्हे गालियां पडने लगी, मामला जब ठंडा पडा तो बात कुछ इस तरह पता चलीसिंहल साहब को जो प्रेस रिलीज बनाने के लिए दी गई थी, वो ही खबर अखबार में नहीं छपी थी, उसी के लिए सिंहल जी को डांट पड रही थी, लेकिन अखबार में खबर न छपने का कारण पता चला तो मीटिंग में मौजूद हर षख्स अपनी हंसी नहीं रोक पाया।दरअसल सिंहल साहब उस प्रेस रिलीज को अपनी जेब मंे रखकर घर ले गए थे। उससे आगे तो वाकई ठहाके लगाने का था, सिंहल साहब का तर्क था कि उन्हे प्रेस रिलीज देते समय ये थोडे कहा गया था कि इस रिलीज की खबर बनानी है।ये तर्क रखते समय सिंहल साहब बिल्कुल भोले बच्चे की तरह की लग रहे थे।
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