कहीं ऐसा ही ना हो जाए...

एक पत्रकार मित्र हैं, बहुत दूर से दिल्ली में पत्रकारिता करने आए और उन्होने दिल्ली में अपने पैर जमा लिए.....एक समय ऐसा भी था कि हेल्थ रिर्पोटिंग में उनकी तूती बोलती थी...उनकी तीखी लेखनी पर अक्सर हेल्थ मिनिस्ट्री के अफसर और एम्स जैसे अस्पतोल के डॉक्टर तिलमिला जाते थे....दिल्ली आए थे, तो उस समय उत्तराखंड राज्य बनाने को लेकर आंदोलन चरम पर था....उन्हे रिपोर्टिंग के लिए जंतर मंतर भेजा जाता था....भाई ने जंतर मंतर पर ही अपना बिस्तर बना डाला....आंदोलनकारियों के बीच खाते पीते और फिर रात में भी सोना वहीं होता....लेकिन रोजाना ही उनके पास एक एक्सक्लूसिव खबर होती....जिसके छपने पर हंगामा ही होता था.....पिं्रट में भी राजनीति होती है...उनके खिलाफ भी होती....लेकिन उनके उग्र स्वभाव के आगे सब बातें बौनी साबित होती थीं....खैर बात उन्ही से संबधित है....एक दिन आफिस में सभी रिपोर्टर के विजिटिंग कार्ड छपकर आए...एक दूसरे को दिखाने के बाद उन्होने कई साथियों से एक एक कार्ड ले लिया....सो मैंने भी उन्हे अपना एक कार्ड पकड़ा दिया। बात आई गई हो गई....एक दिन एक पुलिस वाला आफिस में आया और उसने मेरे बारे में पूछा, तो उसे बताया गया कि मैं दफतर में ही हूं, मिलना है तो रिशेप्शन पर इंतजार करो....उसके बाद मुझे इंटरकाम पर बताया गया कि एक पुलिस वाला मिलने आया है और उसकी पूछताछ से उसका इरादा ठीक नहीं लगता....मैंने कहा कि उसे बिठाओ, मैं आता हूं.....मैं उससे जाकर मिला और कहा कि कहिए मैं ही अरविंद शर्मा हूं..वो भौचक्का सा मेरी तरफ देखने लगा....फिर उसने एक विजिटिंग कार्ड निकाला, जोकि मेरा ही था....मैं उसके हाथ में अपना विजिटिंग कार्ड देखकर हैरान था, क्योंकि वो भी मेरे लिए अनजान था....मैंने कहा कि मैं ही अरविद शर्मा हूं, बात बताओ.....उसने बताना शुरु किया...भाई साहब ये कार्ड जो शख्स मुझे देकर गया है.....वो निहात ही गलत है....उसने रात में पुलिस वालों से पहले तो झगड़ा किया और फिर ये कार्ड पकड़ाकर वहां से स्कूटर से भाग गया.....तुगलक रोड़ थाने से आया हूं.....मैंने उससे कहा कि मैं बहुत लोगों को अपना कार्ड देता हूं....इसमें मैं क्या करुं, वो बोला पक्का आप ही अरविंद शर्मा है..मैंने उससे कहा कि हां, मैं ही अरविंद शर्मा हूं....बोला वो लड़ने वाला शख्स पतला और लंबा था, मूंछे थी....सामने आएगा, तो पहचान लूंगा....तब तक मैं समझ चुका था....कौन था वो....खैर पुलिस वाले को मैंने वहां से फारिग किया...ये पूरा मामला कुछ इस तरह खुलकर सामने आया.....मेरे साथी जिन्होने मुझसे कार्ड लिया था, ये कारगुजारी उन्ही की थी.....दरअसल पुलिस वाले के जाने के बाद खुद ही उनका फोन मेरे पास आया, उनकी नींद खुल चुकी थी और उन्होने बड़े ही सहज ढंग से कहा कि किसी पुलिस वाले का तो फोन तो नहीं आया था तुम्हारे पास....दरअसल रात ज्यादा हो गई थी और उनसे पंगा हो गया था....मैंने तुम्हारा विजिटिंग कार्ड इसलिए पकड़ा दिया था.. कि तुम सब कुछ संभाल लोगे....तो दोस्तों अपना विजिटिंग कार्ड कुराफाती साथियों को देने से पहले सोच लें.....कहीं ऐसा ही ना हो जाए

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