एक महिला पत्रकार हैं....मेरे साथ काम करती थीं.....दिल्ली में ही सालों तक फिल्म और फैशन बीट पर काम किया.....जबका ये किस्सा है, उस समय तक वो कुंवारी थीं....अक्सर जब कभी वो छुटटी पर होतीं तो बॉस उनका थोड़ा बहुत काम मुझे ये कहकर पकड़ा देते थे, कि तेरा टेस्ट बदल जाएगा...साल तो याद नहीं, पर एक फैशन वीक मैंने पूरा कवर किया था...क्राइम के टेस्ट से अलग हटकर...ध्यान है...बॉस ने यही कहकर भेजा था कि जा लैग पीस चैक करके आ....क्या थाना, चौकी और पुलिस हेडक्वार्टर के चक्कर लगाता रहता है...फाइव स्टार में जा....वहां क्या होता है...वो भी देखकर आ.... मैं पहुंच गया....कवर किया...अच्छा अनुभव रहा....खैर बात उन मोहतरमा की हो रही थी....बॉस भी ना, अक्सर चुटकी लिया करते थे....मैंने कहा कि सर इंक्रीमेंट कब लगेगा...तो उन्होने कि तू मोहतरमा से शादी कर ले तो तेरा और इसका दोनों का इंक्रीमेंट एक साथ लगा दूंगा....बॉस की ये चुटकी ही थी...क्योंकि वो अक्सर मोहतरमा के सामने भी ऐसा बोल देते थे.....इस तरह की हल्की फुलकी मजाक का अधिकार केवल सीमित था, वो भी बॉस के पास....लेकिन हमारे एक साथी ने होली के मौके पर उनसे ऐसा ही मजाक करने की भूल की...हुआ यूं कि होली के मौके पर अक्सर.....अक्सर पत्रकार लोग अपने आफिस में बुरा ना मानो होली है....के हेंडिंग लगाकर साथियों के कुछ नाम रख दिया करते थे....करीब दो दर्जन भर साथी दफतर में थे...गुपचुप ढंग से तमाम लोगों के नाम लिखकर उनके आगे कुछ ना कुछ कटाक्ष भरा वैकल्पिक नाम या कहें कि उन्हे उपाधी दी गई....लिस्ट लंबी है...शुरुआत अपने से ही करता हूं..मेरे बारे में लिखा था....ख्वामहखा की हेकड़ी.....जिन्होने लिस्ट बनाई उन्होने अपने बारे में पियक्कड़ लिखा, किसी एक साथी के बारे में लिख दिया...काठ की हांडी एक बार ही चढती है....खैर महिला पत्रकार के नाम के आगे लिख दिया गया.... बूढी घोड़ी लाल लगाम.....ये लिस्ट रंग वाली होली से एक दिन पहले दफतर में लगा दी गई....लोग एक दूसरे के नाम पढ़कर हंस रहे थे, कुछ लोग अंदर ही अंदर लिस्ट बनाने वाले को गाली दे रहे थे.....खैर मोहतरमा का पदारपण दफतर में हुआ और उन्होने लिस्ट में अपने नाम के आगे बूढी घोड़ी लाल लगाम.....लिखा देखा, तो वो आग बबूला हो गई.....आव देखा ना ताव, पहले तो लिस्ट उखाड़कर फाड़ दी और चिल्लाते हुए गालियां देनी शुरु कर दी....रौद्र रुप धारण कर चुकी महिला पत्रकार ने अपना बैग सीट पर पटका और चल दी...सीधे संपादक जी वाले केबिन की तरफ...लेकिन उन्हे वहां निराशा हाथ लगी..क्योंकि संपादक जी थे ही नहीं....खैर उन्होने चीफ रिपोर्टर को फोन लगाया और आंसुओं का दरिया बहाते हुए अपनी भडास निकाल दी...उन्होने उसे कुछ समझाया होगा....तब वो थोड़ा शांत हुर्इं....मेरे इस केस से लेना देना नहीं था...इसलिए बेखौफ होकर मैंने उन्हे जाकर समझाने की कोशिश की...हालांकि मैं भी बेमतलब इस लफडे में नहीं पडना चाहता था..महिला पत्रकार को ये पता था कि इस लिस्ट को मैंने नहीं बनाया...इसलिए मुझसे कहने लगी कि तुम भी पता करो किसने लिस्ट बनाई हैं....खैर थोड़ी ही देर में उस शख्स का नाम उजागर हो गया....फिर क्या हुआ............................................................................................................... कुछ नहीं लिस्ट बनाने वाला साथी होली की छुटटी पर अपने पैतृक घर चला और एक हफते बाद आया...तब तक सब कुछ सामान्य हो गया....वैसे भी जिस साथी ने ये हरकत की थी...उनकी सीधे संपादक जी से पकड थी...इसलिए वो इस बार भी बच गए.....इस घटना से तो मैंने यही सबक लिया कि किसी भी महिला पत्रकार के साथ अच्छा व्यवहार रखा और सीमित रहो....ओछी हरकत कभी कभी भारी पड सकती है....चलते चलते एक सवाल छोडता हूं...बूढी घोडी और लाल लगाम की कहावत का अर्थ पता है
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