चमत्कारी बजरंग बाण के पाठ से मिलती है हर समस्या से मुक्ति





संकट को हरने वाले हनुमान जी का एक रूप है वज्र का। वज्र रूप वाले हनुमान जी को बजरंगबली कहा जाता है। बजरंगबली को प्रसन्न करने के लिए बजरंग बाण का पाठ किया जाता है। हनुमान जी की आराधना शीघ्र फल प्रदान करने वाली है। साथ ही बजरंग बली की पूजा में नियम, संयम का पालन करना बहुत जरूरी होता है। इसलिए हनुमान जी की अराधना करने में किसी भी प्रकार का दुर्व्यसन न करें।
कहा जाता है कि हनुमान बाण का पाठ करने से व्यक्ति के बड़े से बड़े दुःख, पलभर में खत्म हो जाते हैं. लेकिन अगर वहीँ हनुमान बाण का सही से पाठ ना किया जाये तो इसका कोई भी फायदा व्यक्ति को नहीं मिल पाता है.
यदि व्यक्ति नित्य पाठ करने में असमर्थ हो,उन्हें कम से कम प्रत्येक मंगलवार को यह पाठ अवश्य करना चाहिए। बजरंग बाण का नियमित पाठ किसी भी व्यक्ति के जीवन में व्याप्त सम्पूर्ण कष्ट हरने में सक्षम है। जो बच्चे कमजोर हैं, डर लगता हो उन्हें बजरंग बाण का पाठ करवाना चाहिए।

कैसे करें बजरंग बाण का पाठ
किसी योग्य सदाचारी ब्राह्मण आचार्य के निर्देशों पर किसी भी कार्य की सिद्धि हेतु शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार से प्रारंभ कर चालीस दिन इसका अनुष्ठान कर सकते हैं। साधना काल में कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करें व लाल वस्त्र धारण करें। तथा बैठने हेतु ऊनी अथवा कुश के आसन का प्रयोग करें। सर्वप्रथम श्रीराम दरबार का एक चित्र या मूर्ति लाल वस्त्र पर अपने समक्ष स्थापित करें।

बजरंग बाण का पाठ करने के लाभ
 यदि आप शत्रुओं व विरोधियों से बहुत परेशान हैं तो प्रत्येक मंगलवार को 11 बार बजरंग बाण का पाठ करें। बजरंग बाण का नियमित पाठ करने से आत्म-विश्वास व साहस में वृद्धि होती है।
अगर हर कार्य में रुकावटें हों तो शनिवार के दिन 21 बार बजरंग बाण का पाठ करने से फायदा होता है। अगर आप साक्षात्कार देने जा रहे है तो 5 बार बजरंग बाण का पाठ करके जाइये सफलता मिलेगी। यदि व्यापार में हानि हो रही है तो अपने व्यापार स्थल पर लगातार 8 मंगलवार बजरंग बाण का पाठ करें या किसी योग्य पंडित से कराएं।

बजरंग बाण का पाठ
श्रीराम
अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं।
दनुज वन कृशानुं, ज्ञानिनामग्रगण्यम्।।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं।
रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
दोहा
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।
चौपाई
जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी।।
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै।।
जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा।।
बाग उजारि सिन्धु मंह बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा।।
अक्षय कुमार को मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा।।
लाह समान लंक जरि गई। जै जै धुनि सुर पुर में भई।।
अब विलंब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु प्रभु अन्तर्यामी।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होई दुख करहु निपाता।।

जै गिरधर जै जै सुख सागर। सुर समूह समरथ भट नागर।।
ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले। वैरहिं मारू बज्र सम कीलै।।
गदा बज्र तै बैरिहीं मारौ। महाराज निज दास उबारों।।
सुनि हंकार हुंकार दै धावो। बज्र गदा हनि विलम्ब न लावो।।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीसा।।
सत्य होहु हरि सत्य पाय कै। राम दुत धरू मारू धाई कै।।
जै हनुमन्त अनन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।।
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत है दास तुम्हारा।।
बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥
जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥
जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥
उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायं परौं, कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥
ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥
अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥
यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥
पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥
यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥
धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥
दोहा
प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै। सदा धरैं उर ध्यान।।
तेहि के कारज तुरत ही, सिद्ध करैं हनुमान।।

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