गलतियां बहुत कुछ सिखाती है...

कहते हैं....गलतियां बहुत कुछ सिखाती है...एक बार चांदनी चौक की एक इमारत में आग लगी थी....मैं कवर करने के लिए गया था....आग मेरे सामने बुझाई गई....आग लगी थी एक बिजनेसमैन के आफिस में....आग में बिजनेसमैन जिंदा जल गया......ये बात फायर वालों ने भी मुझे बताई थी.... मुझे इस समय उस बिजनेसमैन का नाम याद नहीं.....मैंने उसे अपने अखबार में छाप दिया....अगले दिन दोपहर में चीफ रिपोर्टर का फोन आया....फोन पर बहुत गुस्से में थे....मुझसे पूछा कि कहां हो....मैंने कहा पुलिस हेडक्वार्टर में.....बोले अब आफिस मत आना....पुलिस हेडक्वार्टर में ही रहना....मैंने नाराजगी की वजह पूछी, तो उन्होने बताया कि आग वाली खबर में जिस बिजनेसमैन को तूने जिंदा जलाया है....वो मरा नहीं है....जिंदा है और उसने फोन पर धमकी दी है....आफिस आकर पूरे स्टाफ को भुगतेगा....अब देख ले भाई....मुझे मानों सांप सुंघ गया...कुछ देर तक मैं कुछ नहीं बोला....मैं अपने बॉस को तसल्ली दी....ऐसे बिजनेसमैन बहुत देखें हैं...सर चिंता ना करो....इतनी दूर से आकर दिल्ली में ऐसे ही थोड़े रिपोर्टिंग कर रहे हैं.....देख लेंगे....वो आफिस नहीं आएगा किसी भी कीमत पर.....मैंने फोन रख दिया...इसके बाद मैंने अपने दिमाग पर जोर डाला....लोग कहते हैं मेरा दिमाग शातिर है....अब ऐसी सूरत में उसी शातिर दिमाग का इस्तेमाल करना पड़ेगा....मैंने जोर डाला....यार मैंने किस बिजनेसमैन को मार दिया...मुझे तो मौके पर यही नाम बताया गया था....गलती कहां हुई....खैर दिमाग ने कहा कि इस लफडे को तो अब कोतवाली का एसएचओ ही निपटाएगा....वैसे भी दिल्ली में हर लफडे वाला काम पुलिस वाले ही निपटाते हैं....अच्छे से अच्छे और शरीफ से शरीफ आदमी का साथ पुलिस सदैव देती है.....मैंने तुरंत अपना स्कूटर निकाला और चल पड़ा कोतवाली थाने की तरफ....एसएचओ साहब थाने में ही मिल गए....मैने उन्हे वाकिया बताया और पूछा कि भाई साहब आपने ये क्या कर दिया...आपने जो नाम बताया था, वहीं मैंने छापा...एसएचओ सोचने लगा कि उसने मरने वाले का नाम मुझे कब बताया था......मैंने पूछा कि अगर ये आदमी नहीं मरा, तो फिर कौन मरा है.... एसएचओ ने बताया कि जिस आदमी का नाम आपने छापा है उसका सगा छोटा भाई मरा है.....मेरे पास भी उसका फोन आया था, कह रहा था कि लोग मरने की खबर सुनकर उसके घर फोन कर रहे हैं और घर पर पहुंचकर उसे जिंदा देखकर हैरान हैं.....बहुत दूर दूर से फोन आ रहे हैं, जवाब देते नहीं बन रहा.....अब माजरा मेरी समझ में आ गया.....मैंने एसएचओ से कहा कि बिजनेसमैन के दफतर में आग से काफी नुकसान हुआ है, इंश्यारेंश भी लेना होगा, इसके लिए पुलिस और फायर वालों से बहुत सारी मदद उसे लेनी होगी, इसलिए अब आप ही उसे समझाओ, वर्ना बात बढ़ जाएगी...एसएचओ ने बिजनेसमैन को फोनकर थाने बुलाया और मेरे सामने उसने कहा कि गलती मुझसे ही हुई है, पत्रकार साहब को मैने ही जल्दबाजी में आपका नाम बता दिया था, अब जो कुछ सजा देनी है मुझे दो....वो बिजनेसमैन एक पुलिस वाले की शराफत भरे माफीनामे के आगे बेबस नजर आ रहा था, कहे भी तो क्या कहे, क्या कोई शरीफ बिजनेसमैन किसी पुलिस वाले से पंगा लेने की भूल करेगा....मामला खत्म हुआ और मैंने अपने दफतर पहुंचकर बॉस को पूरा किस्सा सुनाया और ऐसे छाती चौड़ी की, जैसे कोई युद्व का मैदान जीतकर आया हूं....बॉस का कटाक्ष भरा जवाब था, शाबास बेटा, जल्दी तरक्की करोगे.....मैं अपनी सीट पर जाकर बैठ गया.... और काम करने लगा.....लेकिन मुझे अपनी गलती का अहसास था और ये बात मेरे दिमाग मे कोंधती रही....लेकिन उस गलती पर मैंने किस तरह पर्दा डाला...ये बात भी मुझे कई दिनों तक कचोटती रही....फिर सब कुछ सामान्य हो गया...क्योंकि आगे भी उससे बडे बडे मामलों को मैंने चुटकियों से निपटाया....वो किस्से अगली बार बताउंगा....

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