श्रीकृष्ण के साथ क्यों किया था भगवान शिव ने युद्द?


पौराणिक कथाओं का हमारे जीवन में महत्व

पुराणों में दर्ज एक ऐसी ही घटना से हम आपको परिचित करवाने जा रहे हैं जो भगवान कृष्ण और महादेव के युद्ध से जुड़ी है। दैत्यराज बलि, जिसे महान दानी माना जाता था, उसके सौ प्रतापी पुत्र थे। उसके सबसे बड़े पुत्र का नाम था वाणासु, जिसने भगवान शिव की तपस्या कर उनसे सहस्त्र बाहु होने के साथ-साथ अन्य भी कई वरदान प्राप्त कर लिए थे।
वाणासुर की ताकत इतनी ज्यादा थी कि कोई भी उसके साथ युद्ध करने के लिए तैयार नहीं होता था, इस कारण वाणासुर का अहंकार चरम पर पहुंच चुका था।
वाणासुर के आगे हर कोई मस्तक झुका लेता था, इसलिए वह कभी किसी से युद्ध नहीं कर पा रहा था। ऐसे हालातों के मद्देनजर वह बहुत परेशान भी हो गया था, अपनी परेशानी का समाधान प्राप्त करने के लिए वह भगवान शिव के पास गया और उनसे प्रार्थना की।
वाणासुर ने महादेव से कहाहर कोई मेरे बल से भयभीत होकर मुझसे युद्ध करने से बचता है, मेरी युद्ध करने की प्रबल इच्छा हो रही है। हे चराचर जगत के ईश्वर, कृपया कर आप ही मेरे साथ युद्ध कीजिए

वाणासुर का अहंकार देखकर महादेव को भी क्रोध गया, लेकिन वाणासुर उनका परम भक्त था, इसलिए भगवान शिव को अपने क्रोध को शांत करना ही पड़ा।

भोलेनाथ ने वाणासुर से कहामूर्ख, तेरे अहंकार को चूर-चूर कर देने वाला इस धरती पर जन्म ले चुका है, जब तेरे महल पर लगा ध्वज गिर जाए तब समझ लेना कि तेरा अंत समय निकट गया है

वाणासुर की एक बेहद सुंदर कन्या थी, ऊषा। एक बार ऊषा के सपने में भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र प्रद्युम्न के बेटे अनिरुद्ध को देखा और स्वप्न में ही उसकी सुंदरता पर मोहित हो गई
उसने स्वप्न वाली बात अपनी सखी चित्रलेखा को बताई। चित्रलेखा ने अपनी शक्ति से अनिरुद्ध का चित्र उकेरा और ऊषा से कहायही है तुम्हारे सपनों का राजकुमार”?

ऊषा बोलीहां यही है मेरा चितचोर, इनके बिना मेरा जीवन अधूरा है अपनी सखी की इच्छा पूरी करने के लिए चित्रलेखा अनिरुद्ध के महल पहुंची और रात को सोते हुए अनिरुद्ध को पलंग समेत उठा लाई।

जब सुबह अनिरुद्ध की नींद खुली तो अपने सामने सुंदर कन्या (ऊषा) को देखकर वह हैरान रह गया। अनिरुद्ध भी उसकी खूबसूरती पर मोहित हो गया और ऊषा के साथ उसी के महल में ही रहने लगा।
वाणासुर के द्वारपालों को यह संदेह होने लगा कि निश्चित रूप से ऊषा के महल में कोई अपरिचित ठहरा हुआ है। उन्होंने यह शंका जाकर वाणासुर को बता दी। कुछ ही पलों में वाणासुर के महल का ध्वज भी नीचे गिर गया, यह इस बात का संकेत था कि महल में ठहरा हुआ व्यक्ति उसके अंत का कारण बन सकता है।
अस्त्र-शस्त्र और सैनिक लेकर वाणासुर, ऊषा के महल में दाखिल हुआ और उसने देखा कि उसकी पुत्री के सामने एक बेहद सुंदर, बड़ी-बड़ी आंखों वाला एक युवक बैठा हुआ है।
वाणासुर ने उस युवक को युद्ध के लिए ललकारा। ललकार सुनते ही अनिरुद्ध भी क्रोधित हो गया, उसने लोहे की वस्तु से वाणासुर के सैनिकों को मार डाला। जब अनिरुद्ध को नियंत्रित करना मुश्किल हो गया तब वाणासुर ने उसे नागपाश से बंधी बना लिया।

द्वारका नगरी में अनिरुद्ध की खोज तेज हो गई, हर कोई परेशान था। तब देवर्षि नारद ने वहां प्रकट होकर अनिरुद्ध के बंधी होने की सारी घटना श्रीकृष्ण को बताई। तब श्रीकृष्ण, बलराम, सांब, प्रद्युम्न आदि सभी सेना समेत वाणासुर की नगरी पर आक्रमण करने पहुंच गए।
आक्रमण का समाचार सुनकर वाणासुर भी सचेत हो गया। अपने भक्त वाणासुJ की सहायता के लिए भगवान शिव भी, भूत-प्रेत, यक्ष और पुत्र कार्तिकेय के साथ रण भूमि में पहुंच गए।
घनघोर संग्राम होने लगा, हर तरफ बाणों की बौछार थी, अनिरुद्ध का युद्ध भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय के साथ युद्ध होने लगा और श्रीकृष्ण, महादेव के सामने युद्ध के लिए डटे। श्रीकृष्ण के बाणों से शिव की सेना कांपने लगी और वहां से भाग गई।
भगवान शंकर के सभी अस्त्रों-शस्त्रों को श्रीकृष्ण के ब्रह्मास्त्र ने काट डाला इसलिए भगवना शंकर ने अपना ब्रह्मास्त्र चला दिया। लेकिन श्री कृष्ण ने उनके ब्रह्मा्त्र को वायव्यास्त्र से, पर्वतास्त्र को आग्नेयास्त्र से, परिजन्यास्त्र तथा पशुपत्यास्त्र को नारायणास्त्र से नष्ट कर दिया।
श्रीकृष्ण ने वाणासुर की चार बाजू छोड़कर बाकी सब बाजू काट डाली। तब भगवान शिव ने वाणासुर से कहारे मूर्ख, ये ईश्वर के भी ईश्वर हैं, तू इनकी शरण में जाकर उद्धार पा सकता है


भगवान शंकर की बात सुनकर वाणासुर श्रीकृष्ण के चरणों में जा गिरा और उनसे क्षमा मांगने लगा। श्रीकृष्ण ने वाणासुर को क्षमादान दिया और अनिरुद्ध के साथ ऊषा का विवाह संपन्न हुआ।