मैं ये नहीं कहता कि मैंने अपने पंद्रह सोलह साल काम करके बहुत तीर मार लिए हैं....या इसे यूं कहें कि कोई मैंने उंचा पद हासिल कर लिया है, या वो मुकाम हासिल कर लिया है, जिसे पाना चाहता हूं...हसरतें बहुत बाकी हैं.....जो इंशा अल्लाह पूरी जरुर होंगी.....खैर आज एक और घटना याद आ रही है, जिसने मुझे दिल्ली की क्राइम रिपोर्टिंग में अच्छा खासा नाम कमाकर दिया.....दिल्ली में आए ज्यादा वक्त नहीं हुआ था, लेकिन एक जज्बा था, सड़कों से भी अनजान होते हुए मंजिल ढूंड ही लेता था....इसमें मेरा साथ दिया मेरे स्कूटर ने....जो कार आने के बाद भी मेरे घर के पिछवाडे की शोभा बढ़ा रहा है....मेहनत की कमाई से तीन साल तक उसकी ईएमआई चुकाई....कभी स्कूटर ने धोखा नहीं दिया....मुददे की बात पर आता हूं....एक दिन शाम को मैं दफतर में अकेला था....रात के आठ बजे थे... सोचा चलो क्राइम चैक कर लूं.....मैंने पहले सूत्रों से चैक किया...शांति बताई....फिर नंबर आया फायर डिपार्टमेंट का, फोन लगते ही प्रेस के लिए नियुक्त फायरमैन ने कहा सब शांति हैं, बस एक सिलेंडर फटा है कैलाश नगर में....कहां का कैलाश नगर, तो उसने बताया कि पूर्वी दिल्ली में पुराने लोहे के पास वाला... मैंने फिर पुलिस डायरी से आगे फालो किया और थाने में डयूटी अफसर से पूछा कि सिलेंडर कहां फटा है, तो उसने फोन सुनते ही बोला भाई फोन रख दे, हमारे पास टाईम नहीं है, तुम सिलेंडर की बात कर रह हो, यहां ड्रम पर ड्रम फट रहे हैं, लाशें उठाने के लिए आदमी नहीं है.....मैं समझा नहीं और उसने फोन रख दिया....मैंने फिर फोन मिलाया....तो खिझकर उसने यही कहा कि यहां आकर देखो फोन पर क्या बताएं....उसकी हडबडाहट से ये तो मैं भांप गया कि मामला कुछ संगीन है, मौके पर चलना चाहिए....मैंने अपने कैमरामैन साथी को फोन किया तो उसने कहा कि यार जब तू डयूटी पर होता है....तो काम की कुछ न कुछ लकड़ी जरुर पकड़ता है....यार लैब में हूं रील धुलवा रहा हूं और मेरा स्कूटर भी खराब है, मुझे कैमरामैन साथी का सरनेम याद है, राही नाम था, बाद में मीडिया लाइन ही छोड दी, अधेड उम्र के थे और उनकी तनख्वाह भी ज्यादा नहीं थी...मुझे उन पर तरस आया....कहा कि मैं लैब पर ही आ रहा हूं...मैं अपना स्कूटर ले चलूंगा....
खैर राही जी को स्कूटर पर बिठाकर मैं चल पड़ा कैलाशनगर की ओर...जब वहां पहुंचे तो मंजर कुछ और ही था...ऐसा सोचा भी नहीं था.... इस रिहायशी इलाके की एक गली के बाहर भगदड़ मची थी, धमाके पर धमाके हो रहे थे, चींख पुकार मच रही थी, लोगों की लाशें सड़क पर पड़ी थी, लाशें भी पूरी नहीं थी, किसी टांग अलग थी, तो किसी का हाथ अलग, चीथडे बिखरे पड़े थे....एक फायरमैन से पूछा तो उसने यही बताया कि रिहायशी इलाके में केमिकल गोदाम बनाया हुआ था, उसी में रखे केमिकल ड्रम फट रहे हैं....ये केमिकल हेलमेट बनाने में इस्तेमाल होता है....वहां की हालत देखकर मैंने अपने चीफ रिपोर्टर को फोन किया....तो उनका अपने घर से यही जवाब था यार ये तो बड़ी खबर है, मैं खुद आ रहा हूं, बाकी तेरे दोनों साथी भी पहुंचेंगे, उन्हे भी बुला रहा हूं....बॉस अपनी मारुति वैन से वहां पहुंचे...लेकिन उन्होने पहुंचने से पहले एक काम बहुत अच्छा किया....नोयडा में जहां हमारी प्रेस लगी थी, वहां पर डेस्क को पहले ही अलर्ट कर दिया....बड़ी खबर है....पहला पन्ना, तीसरा और पांचवा पन्ना हमें चाहिये, यानी दिल्ली यूनिट को.....मैं खुद दो तीन घंटे तक वहां रहा, मेरे दोनों वरिष्ठ साथी भी वहीं थे....कैमरामैन राही भी अपने काम में जुटा हुआ था, खैर मैंने पंद्रह लाशें गिनी थी, घायलों में भी इतने ही लोग थे....वहां से काम निपटाने के बाद मैं और कैमरामैन बारह बजे आफिस पहुंचे, हमारी ही खबर का इंतजार हो रहा था डेस्क वालों को, खबर भेजो खबर भेजो, भाई लोगों ने दस मिनट में ही डंडा दे दिया.....खैर पहले पेज की खबर सबसे पहले लिखी और फिर रास्ते भर जो कुछ सोचा और समझा था, उसके हिसाब से साइड स्टोरी भी लिखने लगा.....एक घंटे में सब कुछ निपटा दिया....फोटो भी नोएडा आफिस पहुंच गए....रात में दो बजे घर पहुंचा...उन दिनों कुंवारा था...खैर इतनी देर रात खाना भी इसलिए मिल गया, क्योंकि मैं बाटला हाउस में रहता था....वहां के ढाबे देर तक खुलते हैं...अगले दिन सुबह उठकर अखबार देखा तो पहली बार मेरी खबर लीड लगी थी और मुझे बाई लाईन मिली हुई थी, यानी खबर के साथ नाम छपा हुआ था....पूरा पहला पेज कैलाश नगर में विस्फोट की खबर से भरा था...सब लीड में था...पंद्रह के मरने की आशंका.....ये इसलिए था क्योंकि पुलिस अधिकारिक तौर पर नौ लोगों के ही मरने की पुष्टि कर रही थी.....उस समय के डीसीपी प्रदीप भारद्वाज थे।खैर आफिस से कई लोगों की बधाई आई कि आज तो पहले पेज पर छपे हो...अच्छा काम किया है....इस तरह की कई बधाईयों को मैंने सामान्य तौर पर लिया....लेकिन आधा घंटे बाद जो बधाई चीफ रिपोर्टर की तरफ से मिली, उससे मैं गदगद हो गया...बधाई कुछ इस तरह था.........शाबाश बेटा....आज तूने कमाल कर दिया.....पता है केवल इतनी बड़ी खबर को केवल दो अखबारों ने छापा है, बाकी मिस गए.....नवभारत टाईम्स वालों ने तो केवल गैस सिलेंडर की घटना बताकर सिंगल कालम ही छापा है.....बाकी लोगों की तो आज गई, जागरण देखकर तो उनकी फ....गई होगी.....पता है अरविंद सुबह पूर्वी दिल्ली में इतना अखबार बिका है कि अच्छा हुआ कि उसके लिए रात में ही एक्स्ट्रा कापी छाप ली थी.......ये वो खबर थी...जिसने उसी दिन एक नए विवाद को जन्म दिया....डीसीपी प्रदीप भारद्वाज ने रिजाइंडर भेजा कि आप लोगों ने पैनिक क्रिएट किया है, पंद्रह लोग नहीं मरे हैं......वरिष्ठ साथी लोग उस दिन से चिढने लगे.....लेकिन इस खबर ने मुझे दिल्ली में पहली बार पहचान दी....दूसरे अखबारों के क्राइम रिपोर्टर फोन करने लगे, उनमें मैंने अपनी जगह बना ली.....प्रदीप भारद्वाज ने प्रेस ब्राीफिंग के दौरान पूछा कि जागरण से अरविंद शर्मा यहां है या नहीं....मैंने अपना परिचय उन्हे दिया...ये पहला मौका था कि किसी बड़े अफसर से सीधी जान पहचान कुछ अलग तरीके से हुई....मैंने दो दिन बाद उन्हे कहा कि आपको अपना खंडन वाला रिजाइंडर वापस ले लेना चाहिए...क्योंकि अब तक इस मामले में पंद्रह लोगों की मौत हो चुकी है...तो उन्होने हंसकर पूछा कैसे, मैनें कहा कि नौ लोगों की पुष्टि तो आपने कर दी थी, बाकी छह लोग वो भी मर गए, जो झुलसी अवस्था में अस्पताल ले जाए गए थे..... खैर ये वो खबर थी, जिसकी पेपर क्लीपिंग मैंने आज भी संभालकर रखी हुई है....कभी मौका मिला तो भाईयों आपको दिखाउंगा.....अब तो पत्र और पत्रोनवीसी रह ही नहीं गई है...... बाकी फिर......
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