क्या हम वाक़ई अंतरिक्ष युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं? अमेरिका उतारेगा अंतरिक्ष में सेना, ट्रंप ने दिए स्पेस फोर्स तैनात करने के आदेश...




अमेरिका उतारेगा अंतरिक्ष में सेना, ट्रंप ने दिए स्पेस फोर्स तैनात करने के आदेश... क्या हम वाक़ई अंतरिक्ष युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं?
-अरविन्द शर्मा- हॉलीवुड फ़िल्म 'स्टार वॉर्स' जब रिलीज़ हुई तो दुनिया भर के लाखों लोगों ने अंतरिक्ष में होने वाले काल्पनिक युद्ध का आनंद लिया. हालांकि इसका वास्तविकता से कोई नाता नहीं था. लेकिन आज परिस्थिति इसको हकीकत में बदलती नज़र आ रही है। महाशक्तियों में बढ़ती सैन्य प्रतियोगिता को देखते हुए अमेरिका अब एक कदम आगे बढ़ते हुए अंतरिक्ष में अपना दबदबा बनाने के लिए स्पेस फोर्स का गठन करने जा रहा है. 
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पेंटागन को स्पेस फोर्स तैयार करने का आदेश भी दे दिया है। ट्रम्प के मुताबिक, यह फैसला अमेरिका की निजी सुरक्षा को देखते हुए लिया गया है। अमेरिका इस तरह की फोर्स बनाने वाला पहला देश होगा।

डोनाल्ड ट्रम्प ने राष्ट्रीय अंतरिक्ष परिषद में कहा कि जब अमेरिका की रक्षा करने की बात आती है, तो अंतरिक्ष में केवल हमारी मौजूदगी ही काफी नहीं है। अंतरिक्ष में भी अमेरिका का दबदबा होना चाहिए। इसलिए मैंने पेंटागन को स्पेस फोर्स तैयार करने का आदेश दिया है।


अमेरिका की एयरफोर्स की तरह ही स्पेस फोर्स होगा। लेकिन यह उससे अलग होगा। पूरी दुनिया की नजरें हम पर हैं, अमेरिका फिर से सम्मानित हो रहा है। स्पेस फोर्स की योजना से न सिर्फ रोजगार मिलेगा बल्कि देश के नागरिकों का हौसला भी बढ़ेगा।


स्पेस फोर्स अमेरिकी सेना की छठवीं शाखा होगी। अमेरिकी राष्ट्रपति पहले भी इस सेना को बनाने पर जोर देते रहे हैं। अमेरिका के पास मौजूदा वक्त में यूएस आर्मी, एयरफोर्स, मरीन, नेवी और कोस्ट गार्ड हैं। माना जा रहा है कि अमेरिका इस फोर्स के साथ भविष्य में अंतरिक्ष में लड़ी जाने वाली किसी भी लड़ाई के लिए तैयार होगा। स्पेस ऑपरेशन में निगरानी के लिए इस फोर्स का इस्तेमाल किया जा सकता है.


क्या हम वाक़ई अंतरिक्ष युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं?

अतीत में सोवियत संघ और अमरीका के बीच परमाणु संतुलन की वजह से अंतरिक्ष युद्ध नहीं हुआ.अब जबकि दुनिया ज़्यादा जटिल हो गई है और 60 से अधिक देश अंतरिक्ष में नए नए प्रयोग कर रहे हैं, क्या हम वाक़ई अंतरिक्ष युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं?
इस सवाल का जवाब क्या हो सकता है, यह न्यू अमेरिका फाउंडेशन के पीटर सिंगर के बयां से समझ जाइये। पीटर का कहना है, "अंतरिक्ष में लड़ाई एक समय विज्ञान फंतासी थी, पर अब यह एक सच्चाई है."
 हो सकता है कि अंतर आकाश गंगाओं के लोगों में युद्ध न हो और न ही ऐसा हो कि दो ग्रहों के विमान एक दूसरे का पीछा करें. अगर ऐसा होता है तो संभव है कि ये धरती को चक्कर लगा रहे सैटेलाइटों को निशाना बनाने के लिए हो, जिन पर हमारी ज़िंदगी बहुत कुछ निर्भर है.

ये सैटेलाइट हमारे जीवन को कई तरह से प्रभावित करते हैं, एटीएम से पैसे निकालने से लेकर टेलीफ़ोन और इंटरनेट तक इससे चलते हैं. इस पर हुआ हमला जीवन को अस्त व्यस्त कर सकता है.


आधुनिक सेना के लिए भी बिना सैटेलाइल होना, एक दुःस्वप्न से कम नहीं है.


ये सैटेलाइट अपनी कक्षा में महफ़ूज़ समझे जाते थे. पर चीन ने साल 2013 में एक ऐसा मिसाइल बनाया जो 36,000 किलोमीटर ऊपर कक्षा में स्थित उपग्रह को लगभग छूता हुआ निकल गया.

इस पर चिंता जताते हुए अमरीकी अंतरिक्ष कमान के जनरल जॉन हाइटन ने कहा था, "वे शायद किसी भी कक्षा में स्थित उपग्रह को निशाना बना सकते हैं. हमें यह देखना होगा कि हम अपने उपग्रहों को कैसे सुरक्षित रखते हैं."


पर अमरीका ने ही इसकी शुरुआत की थी. तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने 1983 में रणनीतिक सुरक्षा पहल की स्थापना की थी. इसे स्टार वार्स कहा गया था.



इसका मक़सद ऐसे हथियार विकसित करना था, जिसे अंतरिक्ष से चला कर सोवियत मिसाइलों को नष्ट किया जा सके. इसके जवाब में सोवियत संघ यह सोचने लगा कि वह युद्ध के दौरान अमरीकी सैटेलाइट को कैसे निशाना बनाए.


तब सोवियत संघ के नेता निकिता क्रुश्चेव के बेटे और प्रमुख रॉकेट वैज्ञानिक सर्गेई क्रुश्चेव ने एक बार कहा था, "हम भविष्य में अंतरिक्ष में होने वाले युद्ध की तैयारी के बारे में काफ़ी गंभीरता से सोचने लगे थे."


अंतरिक्ष सुरक्षा के विशेषज्ञ और लंदन के किंग्स कॉलेज के भूपेंद्र जसानी कहते हैं, "दरअसल, सोवियत संघ ने कक्षा में स्थापित उपग्रह को निशाना बनाने लायक़ सैटेलाइट बनाने पर काम शुरु कर दिया था. वे एक ऐसे परिदृश्य की कल्पना कर रहे थे जब परमाणु युद्ध होने की स्थिति में अमरीकी मिसाइलों को ख़त्म कर सकें."


चीन कुछ ऐसा ही सोच रहा है


अमरीका के अंतर महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल लांच से जुड़े अफ़सर ब्रायन वीडन कहते हैं कि आज दुनिया में एक ही सैन्य महाशक्ति अमरीका है, इसलिए 1980 के दशक से कहीं ज़्यादा अनिश्चितता भी है.


वे कहते हैं, "अमरीका और सोवियत संघ में यह समझदारी बन गई थी कि इस तरह के मिसाइल पर अंतरिक्ष से होने वाला हमला परमाणु हमला माना जाएगा. इससे दोनों एक दूसरे से डरते भी थे. आज चीन को इस तरह के हमले से कहीं ज़्यादा फ़ायदा होगा क्योंकि उसे पता है कि अमरीकी ताक़त के केंद्र में उसकी अंतरिक्ष की ताक़त है."


संदेह के इस वातावरण में यह डर भी है कि अंतरिक्ष के मलबे को ही अंतरिक्ष से हुआ हमला मान कर जवाबी हमला न कर दिया जाए.


साल 2007 में चीन ने अंतरिक्ष में एक उपग्रह को नष्ट कर दिया था. उसके अनगिनत टुकड़े अंतरिक्ष में तैर रहे हैं जो कभी भी दूसरे उपग्रह से टकरा सकते हैं.


सैन्य उपग्रहों पर साइबर हमला चिंता का एक और कारण है. 

न्य विश्लेषक पीटर सिंगर ने एक किताब लिखी, 'गोस्ट फ़्लीट'. इसमें बताया गया है किस तरह भविष्य में होने वाली लड़ाई अंतरिक्ष तक जा सकती है.

वे कहते हैं, "ऐसा नहीं है कि यह खेल सिर्फ़ बड़ी ताक़तें ही कर सकती हैं. उपग्रह को निशाना बनाने वाली मिसाइल अब तक रूस, चीन और अमरीका से जैसे देशो के पास ही थी. पर साइबर युद्ध ने इस सीमा को भी कम कर दिया है."


यह तो 1950 के दशक से ही लगने लगा था कि अंतरिक्ष भी शांतिपूर्ण नहीं रह जाएगा.


अमरीका ने चांद पर अपना आदमी उतार दिया. लगने लगा कि अंतरिक्ष दुश्मनी नहीं, दोस्ती की जगह बन जाएगा. साल 1967 में आउटर स्पेश ट्रीटी नामक एक अंतरराष्ट्रीय संधि पर दस्तख़त किए गए. इसके तहत यह तय हुआ कि अंतरिक्ष में सामूहिक विध्वंस के हथियारों की तैनाती कोई नहीं करेगा.


पर सैटेलाइट का महत्व बढ़ता गया. इसका इस्तेमाल पहले जासूसी के लिए हुआ, फिर नैविगेशन को निशाना बनाने के लिए और इस तरह अंतरिक्ष का इस्तेमाल युद्ध में होने लगा. आज पहले से अधिक ख़तरा है. आज सैटेलाइट अमरीकी मिलिट्री का नर्वस सिस्टम बन गया है जिसका 80 फ़ीसदी संचार इन्हीं सैटेलाइटों पर निर्भर है.


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