भगवा से लेकर सत्ता के गलियारे तक का सफ़रनामा




 नीति आयोग के नए उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने भगवा गलियारे से लेकर सत्ता के गलियारे तक का सफ़र ऐसे ही तय नहीं किया,बल्कि  इसके पीछे उनकी मोदी भक्ति भी है। सत्ता के गलियर में चर्चा है कि नीति आयोग के उपाध्यक्ष पद पर राजीव कुमार की नियुक्ति में भगवा संगठनों के अलावा पीएम मोदी के प्रति उनका लगाव बेहद काम आया है। सेंटर फॉर पोलिसी रिसर्च से जुडे कुमार ने पीएम मोदी पर एक पुस्तक लिखी थी। 2016 में मोदी और उनकी चुनौतियां नाम से बाजार में आई पुस्तक की मांग काफी देखी गई। नीति आयोग की पहली बैठक में जब पीएम मोदी ने देश के प्रमुख अर्थशास्त्रियों से मुलाकात एवं बातचीत की थी तब उस बैठक में भी राजीव कुमार उपस्थित थे। नोटबंदी पर पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के बयान पर पलटवार कर राजीव कुमार ने अपरोक्ष रूप से पीएम मोदी के कदम का बचाव कर उन्हें ताकत ही प्रदान किया था। 

भगवा खेमे में सक्रिय रहे 
अरविंद पनगढ़िया के इस्तीफे के बाद संघ ने सरकार के सामने उनके उत्तराधिकारी के रूप में किसी व्यक्ति के नाम को आगे नहीं किया था। मगर सरकार को संघ नेतृत्व ने इतना सुझाव जरूर दिया था कि नीति आयोग का अगला उपाध्यक्ष संघ की अपेक्षाओं के अनुरूप होना चाहिए। स्वदेशी जागरण मंच हमेसा से इस बात की वकालत करता रहा है कि विदेश या विश्व बैंक में कार्य करने वालों के बजाय सरकार को ऐसे लोगों को नीति निर्धारण में शामिल करना चाहिए जोकि देश की मिट्टी में पले बडे हों और इसकी मिट्टी को पूरी तरह समझते हों। स्वदेशी जागरण मंच का कहना है कि देश के अनुरूप ही कृषि एवं उद्योग नीति बननी चाहिए। नीति आयोग अब तक इसमें नाकाम रहना है। वैसे राजीव कुमार भगवा संगठनों के बीच सक्रिय रहे हैं। स्वदेशी जागरण मंच के अलावा वे संघ-भाजपा के कई नेताओं से जुडे रहे हैं। भाजपा उपाध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्धे के छोटे से आयोजनों में भी वे उपस्थित रहते थे। इसके अलावा उन्हें संघ के सहसरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले का भी करीबी माना जाता


सहज योग की विद्या संत निर्मला देवी से ली
सूत्रों की माने तो नीति आयोग के नए उपाध्यक्ष राजीव कुमार अर्थशास्त्री के साथ सहज योग के भी धनी हैं। सहज योग की विद्या उन्होंने प्रसिद्ध संत निर्मला देवी से ली है। सूत्र बताते हैं कि 66 वर्षिय राजीव कुमार के जीवन का 35 वर्ष अर्थशास्त्र में बीता है तो 28 वर्ष से वे सहज योग से भी जुड़े हुए हैं। बताया जा रहा है कि संत निर्मला देवी जब जीवीत थीं तो दिल्ली में होने वाले उनके सभी आयोजनों का जिम्मा राजीव कुमार ही संभालते थे। वैसे भी राजीव कुमार को सामाजिक कार्यों में खासी रूचि रही है। पहले इंडिया के नाम से उन्होंने एक गैर सरकारी पहल की भी शुरूआत की है। अब उम्मीद जताई जा रही है कि सहजयोग और अर्थशास्त्र का उनका ज्ञान दोनों मिलकर देश की अर्थव्यवस्था को उचाईयों पर पहुंचाने में मदद करेगा

पीएम मोदी के भरोसे पर खरा उतरेंगे 

अरविंद पनगढ़िया के उत्तराधिकारी के रूप में नीति आयोग का उपाध्यक्ष बनाए गए डाक्टर राजीव कुमार पर आयोग को दिल्ली के अभिजात वर्ग से छूटकारा दिलाने का दबाव रहेगा। संघ के जरिए नीति आयोग के कामकाज पर उठाए जा रहे सवालों के बीच कुमार ने स्वदेशी जागरण मंच के एक आयोजन में 10 जून को कहा था कि नीति आयोग की सभी नीतियां दिल्ली के अभिजात वर्ग के जरिए बनाई जा रही हैं। संघ के दबाव के बाद पद से हटाए गए अरविंद पनगढ़िया के उत्तराधिकारी के रूप में पीएम मोदी ने राजीव कुमार पर भरोसा जताया है। अब राजीव कुमार को पीएम मोदी के भरोसे पर खरा उतरते हुए नीति आयोग की अलग पहचान बनानी होगी। हालांकि इस कार्य में उन्हें संघ के तमाम संगठनों का साथ मिलेगा। क्योंकि राजीव कुमार बीते कई वर्षों से भगवा गलियारे में घुमते रहे हैं।

कॉरपोरेट के लिए धड़कता है दिल
वरिष्ठ पत्रकार राजेश रपरिया फर्स्ट पोस्ट में लिखते हैं कई टीवी बहसों में राजीव कुमार का सान्निध्य मिला है. पर उनका दिल कभी गरीबों के लिए नहीं धड़कता है. गरीबों को मिलने वाली सब्सिडी पर उनसे कभी मतैक्य नहीं हो पाया. उन्हें कॉरपोरेट सेक्टर को मिलने वाली औसतन पांच लाख करोड़ रुपए की सब्सिडी से कभी कोई ऐतराज नहीं रहा.असल में वह इस आंकड़े को भ्रामक मानते हैं. कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) को अनिवार्य बनाये जाने को वह विवेकसंगत निर्णय नहीं मानते हैं. उन्हें सकारात्मक कारणों से अन्ना हजारे आंदोलन के पीछे विदेशी फंड और शक्तियों का हाथ नजर आता था, क्योंकि लोकपाल की मांग विदेशी पूंजी के निर्बाध प्रवाह के लिए उन्हें मौजूं कदम लगता था.
चीनी पूंजीवाद में विश्वास 
एयर इंडिया के निजीकरण के शुरू से ही प्रबल समर्थक हैं और उन्हें चीनी पूंजीवाद में कई विशेषताएं नजर आती हैं. अब वह नीति आयोग को क्या दिशा देते हैं, आने वाले समय में यह देखना काफी दिलचस्प रहेगा. वैसे भी इतनी बड़ा दायित्व उन्हें पहली बार मिला है.एशियन डेवलपमेंट बैंक के 1995 से 2005 तक प्रिंसिपल इकोनॉमिस्ट का पद भी वह संभाल चुके हैं. उनको आप देश में पला-बढ़ा देसी टेक्नोक्रेट और अर्थशास्त्री कह सकते हैं. उनकी यह खूबी शायद अन्य दावेदारों पर भारी पड़ी है. पर उनके नाम से कुछ लोगों को अचरज हो सकता है.नीति आयोग में विवेक देबरॉय, रमेश चंद और वी. के. सारस्वत जैसे वरिष्ठ नामों के इतर उपाध्यक्ष पद पर राजीव कुमार की नियुक्ति हुई है. यह सच है कि डॉ. राजीव कुमार का प्रोफाइल उतना हाई-फाई नहीं है, जितना पूर्ववर्ती अरविंद पनगढ़िया, डॉ. मनमोहन, मोंटेक सिंह अहलूवालिया का रहा है. पर मनमोहन सिंह की तरह उनके पास दीर्घ देसी अनुभव है.